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वो बचपन!

वो बचपन। 

 हिमांशु पाठक 
 जब भी मुझे याद आता वो बचपन। 
कहीं दूर मुझसे ,चला जाता ये मन। 
पुराने मुहल्ले के, पुराने से घर में, 
बचपन की यादों से मिलता तब ये मन।
पुराने से घर की रसोई में माँ की पीठ में,
 माँ के संग झूला, झूलता तब ये बचपन। 
बाहर के कमरे में बाबूजी,आँखों में,
 चश्मा लगाए पढ़ते थे न्यूज पेपर। 
कहीं डाँट ना दें बाबुजी मुझको,
 यही सोचकर डर से घबराता बचपन।
 चल ला जरा अपनी कॉपी-किताबें, 
 ये कहकर कहीं बुला ना दे भाई,
 इसी डर से उनसे डरता था बचपन। 
दीदी तैयार हो जाती थी जब बाजार,
उसके पीछे तब ये लग जाता था बचपन। 
वो दोस्तों के संग लड़ना- झगड़ना, 
घड़ी दो घड़ी रूठकर मान जाना, 
बड़ा याद आता है मुझको बचपन,
 रुआंसा सा हो जाता है अब मेरा मन।
 जब भी मुझे याद आता है बचपन। 
पुराना मुहल्ला, पुराना स्कूल, 
पुराने स्कूल के वो संगी-साथी,
 जब-जब भी याद आतें हैं मुझको, 
 मिलने को इनसे चला जाता तब मन। 
कॉपी से कागज को फाड़कर नाव बनाना,
सड़कों के गड्ढों में बरसात का, 
जमे पानी में नाव चलाना।
 मेंढक पकड़ कर कक्षा में जाना, 
और पढ़ते बच्चों पर उसे छोड़ देना, 
चिल्लाते थें बच्चें और मार खाते थें हम। 
कितना सुहाना था वो प्यारा सा बचपन। 
जब भी मुझे याद आता है बचपन। 
चला जाता तब-तब यादों में मेरा मन। 
दोस्तों के संग अंठी खेलना, 
और भरी दोपहरी पानी में तैरना, 
ईजा का जब संटी लेकर आना, 
नंगे ही तब घर को भाग जाना, 
बड़ा ही सुहाना था अपना वो बचपन। 
अगर भूलकर होमवर्क ना करतें, 
तो टीचर के हाथ से मार खाना। 
वो उट्ठक,वो बैठक,वो मुर्गा बन जाना।
कक्षा में बच्चों का लंच चुराकर खा जाना। 
उनकी मुरझायी-सी सूरत देखकर, 
तब मन ही मन में बाँछे खिल जाना । 
कितना प्यारा था अपना वो बचपन, 
बड़ा याद आता है अपना वो बचपन। 
 समाप्त 
 हिमांशु पाठक
 "पारिजात" ,
 ए-36,जज-फार्म छोटी मुखानी हल्द्वानी
 नैनीताल उत्तराखंड

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11 Comments

Reyaan

13-May-2022 07:41 PM

Very nice 👍🏼

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Seema Priyadarshini sahay

12-May-2022 06:58 PM

बहुत खूबसूरत

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Haaya meer

12-May-2022 06:34 PM

Very nice

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